"नाम-रूप का भेद / नाम बड़े और दर्शन छोटे / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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रहें सर्वदा क्रुद्ध , मास्टर चक्कर खाते । | रहें सर्वदा क्रुद्ध , मास्टर चक्कर खाते । | ||
− | इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते | + | इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते ।। |
− | कहँ | + | कहँ ‘काका', बलवीर सिंह जी लटे हुए हैं । |
− | थानसिंह के सारे कपड़े फटे | + | थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुए हैं ।। |
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− | बेच रहे हैं कोयला , लाला हीरालाल । | + | बेच रहे हैं कोयला, लाला हीरालाल । |
− | सूखे गंगाराम जी , रूखे मक्खनलाल | + | सूखे गंगाराम जी, रूखे मक्खनलाल ।। |
− | रूखे मक्खनलाल , झींकते दादा - दादी । | + | रूखे मक्खनलाल, झींकते दादा-दादी । |
− | निकले बेटा आशाराम निराशावादी | + | निकले बेटा आशाराम निराशावादी ।। |
कहँ ‘काका' कवि, भीमसेन पिद्दी से दिखते । | कहँ ‘काका' कवि, भीमसेन पिद्दी से दिखते । | ||
− | कविवर ‘दिनकर’ | + | कविवर ‘दिनकर’ छायावादी कविता लिखते ।। |
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− | तेजपाल जी भोथरे , मरियल से मलखान । | + | तेजपाल जी भोथरे, मरियल से मलखान । |
− | लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान | + | लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान ।। |
− | करी न कौड़ी दान , बात अचरज की भाई । | + | करी न कौड़ी दान, बात अचरज की भाई । |
− | वंशीधर ने जीवन - भर वंशी न बजाई | + | वंशीधर ने जीवन-भर वंशी न बजाई ।। |
− | कहँ | + | कहँ ‘काका' कवि, फूलचंद जी इतने भारी । |
− | दर्शन करते ही टूट जाये कुर्सी बेचारी | + | दर्शन करते ही टूट जाये कुर्सी बेचारी ।। |
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− | खट्टे - खारी - खुरखुरे मृदुलाजी के बैन । | + | खट्टे-खारी-खुरखुरे मृदुलाजी के बैन । |
− | मृगनयनी के देखिये चिलगोजा से नैन | + | मृगनयनी के देखिये चिलगोजा से नैन ।। |
− | चिलगोजा से नैन, | + | चिलगोजा से नैन, शांता करतीं दंगा । |
− | नल पर न्हाती देखीं हमने यमुना, गंगा | + | नल पर न्हाती देखीं हमने यमुना, गंगा ।। |
− | कहँ | + | कहँ ‘काका' कवि, लज्जावती दहाड़ रही हैं । |
− | दर्शन देवी लंबा घूँघट काढ़ रही हैं | + | दर्शन देवी लंबा घूँघट काढ़ रही हैं ।। |
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अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम । | अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम । | ||
− | कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम | + | कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम ।। |
− | रक्खा दशरथ नाम , मेल क्या खूब मिलाया । | + | रक्खा दशरथ नाम, मेल क्या खूब मिलाया । |
− | दूल्हा संतराम को आई दुल्हन माया | + | दूल्हा संतराम को आई दुल्हन माया ।। |
− | ‘काका' कोई - कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा । | + | ‘काका' कोई-कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा । |
− | पार्वती देवी हैं शिवशंकर की अम्मा | + | पार्वती देवी हैं शिवशंकर की अम्मा ।। |
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दूर युद्ध से भागते नाम रखा रणधीर । | दूर युद्ध से भागते नाम रखा रणधीर । | ||
भागचन्द की आज तक सोई है तकदीर ॥ | भागचन्द की आज तक सोई है तकदीर ॥ |
10:06, 16 अगस्त 2010 का अवतरण
नाम-रूप के भेद पर कभी किया है ग़ौर ?
नाम मिला कुछ और तो शक्ल-अक्ल कुछ और।।
शक्ल-अक्ल कुछ और नयनसुख देखे काने ।
बाबू सुंदरलाल बनाये ऐंचकताने ।।
कहँ ‘काका' कवि, दयाराम जी मारें मच्छर ।
विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर ।।
मुंशी चंदालाल का तारकोल सा रूप ।
श्यामलाल का रंग है जैसे खिलती धूप ।।
जैसे खिलती धूप, सजे बुश्शर्ट पैंट में-
ज्ञानचंद छै बार फ़ेल हो गये टैंथ में ।।
कहँ ‘काका' ज्वालाप्रसाद जी बिल्कुल ठंडे ।
पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे ।।
देख अशर्फ़ीलाल के घर में टूटी खाट ।
सेठ भिखारीदास के मील चल रहे आठ ।।
मील चल रहे आठ, करम के मिटें न लेखे ।
धनीराम जी हमने प्रायः निर्धन देखे ।।
कहँ ‘काका' कवि, दूल्हेराम मर गये कुँवारे ।
बिना प्रियतमा तड़पें प्रीतमसिंह बेचारे ।।
पेट न अपना भर सके जीवन भर जगपाल ।
बिना सूँड़ के सैकड़ों मिलें गणेशीलाल ।।
मिलें गणेशीलाल, पैंट की क्रीज़ सम्हारी ।
बैग कुली को दिया, चले मिस्टर गिरधारी ।।
कहँ ‘काका' कविराय, करें लाखों का सट्टा ।
नाम हवेलीराम किराये का है अट्टा ।।
चतुरसेन बुद्धू मिले, बुद्धसेन निर्बुद्ध ।
श्री आनंदीलाल जी रहें सर्वदा क्रुद्ध ।।
रहें सर्वदा क्रुद्ध , मास्टर चक्कर खाते ।
इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते ।।
कहँ ‘काका', बलवीर सिंह जी लटे हुए हैं ।
थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुए हैं ।।
बेच रहे हैं कोयला, लाला हीरालाल ।
सूखे गंगाराम जी, रूखे मक्खनलाल ।।
रूखे मक्खनलाल, झींकते दादा-दादी ।
निकले बेटा आशाराम निराशावादी ।।
कहँ ‘काका' कवि, भीमसेन पिद्दी से दिखते ।
कविवर ‘दिनकर’ छायावादी कविता लिखते ।।
तेजपाल जी भोथरे, मरियल से मलखान ।
लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान ।।
करी न कौड़ी दान, बात अचरज की भाई ।
वंशीधर ने जीवन-भर वंशी न बजाई ।।
कहँ ‘काका' कवि, फूलचंद जी इतने भारी ।
दर्शन करते ही टूट जाये कुर्सी बेचारी ।।
खट्टे-खारी-खुरखुरे मृदुलाजी के बैन ।
मृगनयनी के देखिये चिलगोजा से नैन ।।
चिलगोजा से नैन, शांता करतीं दंगा ।
नल पर न्हाती देखीं हमने यमुना, गंगा ।।
कहँ ‘काका' कवि, लज्जावती दहाड़ रही हैं ।
दर्शन देवी लंबा घूँघट काढ़ रही हैं ।।
अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम ।
कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम ।।
रक्खा दशरथ नाम, मेल क्या खूब मिलाया ।
दूल्हा संतराम को आई दुल्हन माया ।।
‘काका' कोई-कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा ।
पार्वती देवी हैं शिवशंकर की अम्मा ।।
दूर युद्ध से भागते नाम रखा रणधीर ।
भागचन्द की आज तक सोई है तकदीर ॥
सोई है तकदीर, बहुत से देखे भाले ।
निकले प्रिय सुखदेव सभी दु:ख देने वाले ॥
कह काका कविराय आँकड़े बिलकुल सच्चे ।
बालकराम ब्रह्मचारी के बारह बच्चे ॥
आकुल व्याकुल दीखते शर्मा परमानन्द ।
कार्य अधूरे छोड़कर भागे पूरनचँद ॥
भागे पूरनचँद, अमर जी मरते देखे ।
मिश्रीबाबू कड़वी बातें करते देखे ॥
कह काका भण्डारासिंह जी रीते-थोथे ।
बीत गया जीवन विनोद का रोते-धोते ॥
शीला जीजी लड़ रही, सरला करती शोर ।
कुसुम, कमल, पुष्पा, सुमन, निकली बड़ी कठोर ॥
निकली बड़ी कठोर, निर्मला मन की मैली ।
सुधा सहेली अमृताबाई सुनी विषैली ॥
कह काका कवि बाबूजी क्या देखा तुमने ?
बल्ली जैसी मिस लल्ली देखीं हैं हमने ॥
कलयुग में कैसे निभे पति पत्नी क साथ ।
चपलादेवी को मिले बाबू भोलेनाथ ॥
बाबू भोलेनाथ कहाँ तक कहें कहानी ।
पंडित रामचंद्र की पत्नी राधारानी ॥
काका लक्ष्मीनारायन की गृहणी रीता ।
कृष्णचंद्र की वाइफ बन कर आई सीता ॥
पूँछ न आधी इंच भी कहलाते हनुमान ।
मिले न अर्जुनलाल के घर में तीर कमान ॥
घर में तीर कमान, बदी करता है नेका ।
तीर्थराज ने कभी न इलाहबाद देखा ॥
सत्यपाल काका की रक़म डकार चुके हैं ।
विजयसिंह दस बार इलेक्शन हार चुके हैं ॥
सुखीरामजी अति दु:खी दु:खीराम अलमस्त ।
हिकमतराय हकीमजी रहे सदा अस्वस्थ ॥
रहे सदा अस्वस्थ, प्रभु की देखो माया ।
प्रेमचन्द में रत्तीभर भी प्रेम न पाया ॥
कह काका जब वृत-उपवासों के दिन आते ।
त्यागी साहब अन्न त्याग कर रिश्वत खाते ॥
रामराज के घाट पर आता जब भूचाल ।
लुढ़क जाएँ श्रीतख्तमल बैठे घूरेलाल ॥
बैठे घूरेलाल रंग किस्मत दिखलाती ।
इत्रसिंह के कपड़ों में से बदबू आती ॥
कह काका गम्भीरसिंह मुँह फाड़ रहे हैं ।
महाराज लाला की गद्दी झाड़ रहे हैं ॥
दूधनाथ जी पी रहे सपरेटा की चाय ।
गुरु गोपालप्रसाद के घर में मिली न गाय ॥
घर में मिली न गाय, समझ लो असली कारण ।
माखन छोड़ डालडा खाते बृजनारायण ॥
काका प्यारेलाल सदा गुर्राते देखे ।
हरिश्चन्द्र जी झूठे केस लड़ाते देखे ॥
रूपराम के रूप की निन्दा करते मित्र ।
चकित रह गए देख कर कामराज का चित्र ॥
कामराज का चित्र थक गए करके विनती ।
यादराम को याद न होती सौ तक गिनती ॥
कह काका कविराय बड़े निकले बेदर्दी ।
भरतराम ने चरतराम पर नालिश कर दी ॥
नाम धाम से काम का क्या है सामञ्जस्य ?
किसी पार्टी के नहीं झंडाराम सदस्य ॥
झंडाराम सदस्य, भाग्य की मिले न रेखा ।
स्वर्णसिंह के हाथ कड़ा लोहे का देखा ॥
कह काका कंठस्थ करो ये बड़े काम की ।
माला पूरी हुई एक सौ आठ नाम की ॥