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"मौन ही मुखर है / विष्णु प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर

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धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम
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कितनी सुन्दर थी
लो आ गया एक और नया वर्ष
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वह नन्हीं-सी चिड़िया
ढोल बजाता, रक्त बहाता
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कितनी मादकता थी
हिंसक भेड़ियों के साथ
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कण्ठ में उसके
ये वे ही भेड़िए हैं
+
जो लाँघ कर सीमाएँ सारी
डर कर जिनसे
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कर देती थी आप्लावित
की थी गुहार आदिमानव ने
+
विस्तार को विराट के
अपने प्रभु से-
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कहते हैं
 
+
वह मौन हो गई है-
'दूर रखो हमें हिंसक भेड़ियों से'
+
पर उसका संगीत तो
हाँ, ये वे ही भेड़िए हैं
+
और भी कर रहा है गुंजरित-
जो चबा रहे हैं इन्सानियत इन्सान की
+
तन-मन को
और पहना रहे हैं पोशाकें उन्हें
+
दिगदिगन्त को
सत्ता की, शैतान की, धर्म की, धर्मान्धता की
+
इसीलिए कहा है
और पहनकर उन्हें मर गया आदमी
+
महाजनों ने कि
सचमुच
+
मौन ही मुखर है,
 
+
कि वामन ही विराट है ।
जीव उठी वर्दियाँ और कुर्सियाँ
+
जो खेलती हैं नाटक
+
सद्भावना का, समानता का
+
निकालकर रैलियाँ लाशों की,
+
मुबारक हो, मुबारक हो,
+
नई रैलियों का यह नया युग
+
तुमको, हमको और उन भेड़ियों को भी
+
सबको मुबारक हो,
+
धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम
+
 
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11:07, 16 अगस्त 2010 का अवतरण

कितनी सुन्दर थी
वह नन्हीं-सी चिड़िया
कितनी मादकता थी
कण्ठ में उसके
जो लाँघ कर सीमाएँ सारी
कर देती थी आप्लावित
विस्तार को विराट के
कहते हैं
वह मौन हो गई है-
पर उसका संगीत तो
और भी कर रहा है गुंजरित-
तन-मन को
दिगदिगन्त को
इसीलिए कहा है
महाजनों ने कि
मौन ही मुखर है,
कि वामन ही विराट है ।