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"सुख दुख इस जीवन में / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
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+ | आते हैं जाते हैं | ||
+ | सुख दुख इस जीवन में । | ||
+ | </poem> |
23:09, 16 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
मन से ही उत्पन्न हुए हैं
खो जाते हैं मन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
हो मन के अनुकूल
उसे ही सुख कहते हैं
मन से जो प्रतिकूल
उसे ही दुख कहते हैं
गमनागमन किया करते हैं
इच्छा के वाहन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
दूल्हे जैसा सर्व प्रतीक्षित
सुख आता है
अनचाहे मेहमान सरीखा
दुख जाता है
एक गया तो दूजा आया
पड़ें न उलझन में
सुख फूलों सा मनमोहक
सुन्दर दिखता है
फिर दुख आता हे तो
काँटों सा चुभता है
एक हँसाता एक रुलाता
क्रमशः मन के वन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।
दोनों का ही कुछ स्वतन्त्र
अस्तित्व नहीं है
और किसी का कुछ भी
स्थायित्व नहीं है
दुख भोगा सुख की तलाश में
मिला न तन धन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।