भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुख दुख इस जीवन में / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: मन से ही उत्पन्न हुए हैं खो जाते हैं मन में आते हैं जाते हैं सुख …)
 
छो ()
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
   
+
{{KKGlobal}}
  मन से ही उत्पन्न हुए हैं
+
{{KKRachna
खो जाते हैं मन में
+
|रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
आते हैं जाते हैं
+
|संग्रह=
सुख दुख इस जीवन में ।
+
}}
हो मन के अनुकूल
+
{{KKCatKavita‎}}
उसे ही सुख कहते हैं
+
<Poem>  
मन से जो प्रतिकूल
+
मन से ही उत्पन्न हुए हैं
उसे ही दुख कहते हैं
+
खो जाते हैं मन में
गमनागमन किया करते हैं
+
आते हैं जाते हैं
इच्छा के वाहन में
+
सुख दुख इस जीवन में ।
आते हैं जाते हैं
+
 
सुख दुख इस जीवन में ।
+
हो मन के अनुकूल
दूल्हे जैसा सर्व प्रतीक्षित
+
उसे ही सुख कहते हैं
 +
मन से जो प्रतिकूल
 +
उसे ही दुख कहते हैं
 +
गमनागमन किया करते हैं
 +
इच्छा के वाहन में
 +
आते हैं जाते हैं
 +
सुख दुख इस जीवन में ।
 +
 
 +
दूल्हे जैसा सर्व प्रतीक्षित
 
सुख आता है
 
सुख आता है
अनचाहे मेहमान सरीखा
+
अनचाहे मेहमान सरीखा
दुख जाता है
+
दुख जाता है
एक गया तो दूजा आया
+
एक गया तो दूजा आया
पड़ें न उलझन में
+
पड़ें न उलझन में
सुख फूलों सा मनमोहक
+
 
सुन्दर दिखता है
+
सुख फूलों सा मनमोहक
फिर दुख आता हे तो
+
सुन्दर दिखता है
काँटों सा चुभता है
+
फिर दुख आता हे तो
एक हंसाता एक रुलाता
+
काँटों सा चुभता है
क्रमशः मन के वन में
+
एक हँसाता एक रुलाता
आते हैं जाते हैं
+
क्रमशः मन के वन में
सुख दुख इस जीवन में ।
+
आते हैं जाते हैं
दोनों का ही कुछ स्वतन्त्र
+
सुख दुख इस जीवन में ।
अस्तित्व नहीं है
+
  
और किसी का कुछ भी
+
दोनों का ही कुछ स्वतन्त्र
स्थायित्व नहीं है
+
अस्तित्व नहीं है
दुख भोगा सुख की तलाश में
+
और किसी का कुछ भी
मिला न तन धन में
+
स्थायित्व नहीं है
आते हैं जाते हैं
+
दुख भोगा सुख की तलाश में
सुख दुख इस जीवन में ।
+
मिला न तन धन में
 +
आते हैं जाते हैं
 +
सुख दुख इस जीवन में ।
 +
</poem>

23:09, 16 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

  
मन से ही उत्पन्न हुए हैं
खो जाते हैं मन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

हो मन के अनुकूल
उसे ही सुख कहते हैं
मन से जो प्रतिकूल
उसे ही दुख कहते हैं
गमनागमन किया करते हैं
इच्छा के वाहन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

दूल्हे जैसा सर्व प्रतीक्षित
सुख आता है
अनचाहे मेहमान सरीखा
दुख जाता है
एक गया तो दूजा आया
पड़ें न उलझन में

सुख फूलों सा मनमोहक
सुन्दर दिखता है
फिर दुख आता हे तो
काँटों सा चुभता है
एक हँसाता एक रुलाता
क्रमशः मन के वन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

दोनों का ही कुछ स्वतन्त्र
अस्तित्व नहीं है
और किसी का कुछ भी
स्थायित्व नहीं है
दुख भोगा सुख की तलाश में
मिला न तन धन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।