"क्या जगह है? मुझको ले आए कहां ? / रविकांत अनमोल" के अवतरणों में अंतर
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14:13, 18 अगस्त 2010 का अवतरण
दो घड़ी इस दिल को बहलाए कहां
आदमी जाए तो अब जाए कहां
सरह्दें ही सरहदें हैं हर तरफ़
क्या जगह है? मुझको ले आए कहां ?
झड़ गए पत्ते तो शाख़ें कट गई
अब दरख़्तों में हैं वो साए कहां
आम का वो पेड़ कब का कट चुका
कोयल अब गाए भी तो गाए कहां
खेल कर होली हमारे ख़ून से
पल में खो जाते हैं वो साए कहां
जिनमें कुछ इनसानियत हो, प्यार हो
अब मिलेंगे ऐसे हमसाए कहां
(हमसाए=पड़ोसी)
जिनको गाने के लिए आए थे हम
हमने अब तक गीत वो गाए कहां