भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम्हीं पैरों का बंधन हो गए हो / रविकांत अनमोल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकांत अनमोल |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> किसी राधा के…)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:19, 18 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

किसी राधा के मोहन हो गए हो
किसी के दिल की धड़कन हो गए हो

मिरा आंगन महक उठ्ठा है तुमसे
मिरे आंगन का चंदन हो गए हो

हमें कल तक दिलो-जां मानते थे
हमारी जां के दुश्मन हो गए हो

तुम्हीं में बस गए हैं सारे अरमां
हमारे मन का आंगन हो गए हो

तुम्हें बनना था चलने की तमन्ना
तुम्हीं पैरों का बंधन हो गए हो