भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो कोई नहीं सृष्टि…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:49, 19 अगस्त 2010 का अवतरण
तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो कोई नहीं सृष्टि में तुमसा माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो
ब्रह्मा तो केवल रचता है तुम तो पालन भी करती हो शिव हरते तो सब हर लेते तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो किसे सामने खड़ा करूं मैं और कहूं फिर तुम ऐंसी हो।।
ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे सारे देव भक्ति के भूखे लगते हैं तेरी तुलना में ममता बिन सब रूखे रूखे पूजा करे सताये कोई सब की सदा तुम हितैषी हो।।
कितनी गहरी है अद् भुत सी तेरी यह करुणा की गागर जाने क्यों छोटा लगता है तेरे आगे करुणा सागर जाकी रहि भावना जैसी मूरत देखी तिन्ह तैंसी हो।।
मेरी लघु आकुलता से ही कितनी व्याकुल हो जाती हो मुझे तृप्त करने के सुख में तुम भूखी ही सो जाती हो सब जग बदला मैं भी बदला तुम तो वैसी की वैसी हो।।
तुम से तन मन जीवन पाया तुमने ही चलना सिखलाया पर देखो मेरी कृतघ्नता काम तुम्हारे कभी नआया क्यों करती हो क्षमा हमेशा तुम भी तो जाने कैसी हो माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।।