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<center><font size=51>किष्किन्धा काण्डश्रीगणेशायनमः</font></center><br><brcenterश्रीगणेशाय नमः<brfont size=1>श्रीजानकीवल्लभो विजयते</font></center><br><br><center><font size=6>श्रीरामचरितमानस</font></center><br><br><center><font size=4>चतुर्थ सोपान</font></center><br><br>(<center><font size=5>किष्किन्धाकाण्ड)</font></center><br><br><span class="shloka">श्लोक<br>
कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ<br>
शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।<br>
मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौं हितौ<br>
सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः।।1।।नः॥१॥<br>
ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं<br>
श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा।<br>
संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं<br>
धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्।।2।।श्रीरामनामामृतम्॥२॥ <br><br>
सो0-मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि करकर।<br>जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न।।<br><br>चौ0-जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।<br>
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस।।<br>
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक परवत निअराया।।<br>