भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: बूए-गुल, नालए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल<br /> जो तेरी बज़्म से निकला सो …) |
Aadil rasheed (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | बूए-गुल, | + | बूए-गुल, nala नाla ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल<br /> |
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला ।<br /> | जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला ।<br /> | ||
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,<br /> | चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,<br /> | ||
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला ।<br /> | बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला ।<br /> |
15:59, 22 अगस्त 2010 का अवतरण
बूए-गुल, nala नाla ए-दिल, दूदे चिराग़े महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला ।
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के ख़ुतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला ।