भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पार्क में हँसी / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मान…)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:23, 22 अगस्त 2010 के समय का अवतरण


एक

एक औरत हँसने का प्रयास करती है
दूसरी हँसने के नाम पर शरमाती है
तीसरी उसकी शर्म पर खिलखिलाती है
चौथी तो हँसते हुए
किसी भेड़ सी मिमियाती है

दो

लड़के किसी की चाल पर हँसते हैं
फिर अपनी बेबसी, अपने हाल पर हँसते हैं
और जिसका मिलता नहीं जवाब उन्हें
एक ऐसे ही सवाल पर हँसते हैं

तीन

बीच की उमर वाले, ओट में जा करके
पेट को हिलाकर के, हँसते हैं खुलकर के
मगर ऐसा लगता है कि उनकी हँसी के
ले गया हो कोई सब रंग चुराकर के

चार

बूढ़े धीरे-धीरे आते हैं, घेरा बनाते हैं
तालियाँ जो पीटते हैं, पीटते ही जाते हैं
फिर हाथों को उठाकर के एक साथ हँसते हैं
साँस जो उखड़ती है तो हँसी भूल जाते हैं


पाँच

आता है एक बन्दा, सदा हँसते-हँसते
चले हँसते-हँसते, रुके हँसते-हँसते
करे बात देखो, वो हँसते-हँसते
सब कहें पागल, उसे हँसते-हँसते
2001