भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उठो लाल अब आँखें खोलो / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: उठो लाल अब आंखें खोलो अपनी बदहालत पर रोलो पानी तो उपलब्ध नहीं है …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:37, 22 अगस्त 2010 का अवतरण
उठो लाल अब आंखें खोलो अपनी बदहालत पर रोलो पानी तो उपलब्ध नहीं है चलो आंसुओं से मुँह धोलो।।
कुम्हलाये पौधे बिन फूले सबके तन सिकुड़े मुंह फूले बिजली बिन सब काम ठप्प है बैठे होकर लँगड़े लूले बेटा उठो और जल्दी से नदिया से कुछ पानी ढ़ोलो।।उठो,,,,
बीते बरस पचास प्रगति का सूरज अभी नहीं उग पाया जिसकी लाठी भैंस उसी की फिर से सामन्ती युग आया कब तक आँखें बन्द रखोगे बेटा जागो कुछ तो बोलो।।उठौ,,,,
जिसको गद्दी पर बैठाला उसने अपना घर भर डाला पांच साल में दस घंटे का हमको अंधकार दे डाला सबके इन्वर्टर हटवाकर इनकी भी तिो आँखें खोलो।।उठौ,,,,,
चुभता वर्ग भेद का काँटा सबको जाति धर्म में बांटा जमकर मार रहे कुछ गुण्डे प्रजातन्त्र के मुंह पर चांटा तोड़ो दीवारें सब मिलकर भारत माता की जय बोलो।।उठौ,,,,,
चली आँधियां भ्रष्टाचारी उड़ गई नैतिकता बेचारी गधे पंजीरी खयें बैठकर प्रतिभा फिरती मारी मारी लेकर हांथ क्रान्ति की ज्वाला इन्कलाब का हल्ला बोलो।।उठौ,,,,,
आस न करना सोये सोये मिलता नहीं बिना कुछ खोये खरपतवार हटाओ बचालो बीज शहीदों ने जो बोये लड्डू दोनों हांथ न होंगे या हंसलो या गाल फुलोलो।।उठो,,,,,
जो बोते हो वह उगता है सोये भाग नहीं जगता है और किसी के रहे भरोसे उसको सारा जग ठगता है कठिन परिश्रम की कुंजी से खुद किस्मत का ताला खोलो।।उठौ,,,,
नहीं किसी से डरना सीखो सच्ची मेहनत करना सीखो जागो उठो देश की खातिर हंसते हंसते मरना सीखो राष्ट्रभक्ति की बहती गंगा तुम भी अपने पातक धोलो।।उठो,,,,,