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02:23, 23 अगस्त 2010 का अवतरण
खुल गई नाव
घिर आई संझा, सूरज
डूबा सागर-तीरे।
धुंधले पड़ते से जल-पंछी
भर धीरज से
मूक लगे मंडराने,
सूना तारा उगा
चमक कर
साथी लगा बुलाने।
तब फिर सिहरी हवा
लहरियाँ काँपीं
तब फिर मूर्छित
व्यथा विदा की
जागी धीरे-धीरे।