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"ख़ामोशी के ख़िलाफ़ / शाहिद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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'''खोमोशी के खिलाफ'''
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'''गज़ा पट्टी पर इस्राइली हमले के खिलाफ़ लिखी गई कविता'''
  
 
दर्द हो तो  
 
दर्द हो तो  
 
मदावा भी होगा
 
मदावा भी होगा
हमारी खामोशी
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हमारी ख़ामोशी
जुर्म होगी
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ज़ुर्म होगी
अपने खिलाफ
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अपने खिलाफ़
 
और हम भुगत रहे हैं  
 
और हम भुगत रहे हैं  
इसकी ही सजा
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इसकी ही सज़ा
 
लब खोलो
 
लब खोलो
 
कुछ बोलो  
 
कुछ बोलो  
 
कोई नारा, कोई सदा  
 
कोई नारा, कोई सदा  
उछालो जुल्‍मत की इस रात में  
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उछालो ज़ुल्‍मत की इस रात में  
आवाजों के बम और बारूद
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आवाज़ों के बम और बारूद
ढह जाएंगे इन से  
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ढह जाएँगे इन से  
जालिमों के किले
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ज़ालिमों के किले
(14.01.09: गाजा पर इस्राइली हमले के खिलाफ लिखी कविता)
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--[[सदस्य:Shahid|Shahid]] 06:16, 25 अगस्त 2010 (UTC)
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'''रचनाकाल''' : 14.01.09  
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02:42, 26 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

गज़ा पट्टी पर इस्राइली हमले के खिलाफ़ लिखी गई कविता

दर्द हो तो
मदावा भी होगा
हमारी ख़ामोशी
ज़ुर्म होगी
अपने खिलाफ़
और हम भुगत रहे हैं
इसकी ही सज़ा
लब खोलो
कुछ बोलो
कोई नारा, कोई सदा
उछालो ज़ुल्‍मत की इस रात में
आवाज़ों के बम और बारूद
ढह जाएँगे इन से
ज़ालिमों के किले

रचनाकाल : 14.01.09