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"दिन सहज ढले / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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ऐसे ही दिन सहज ढले
 
ऐसे ही दिन सहज ढले
{'ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से )
 

03:04, 12 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण

आओ इस आम के तले

इस घास पर बैठें हम

जी चाही बात कुछ चले

कोई भी और कहीं से


बातों के टुकड़े जोड़ें

संझा की बेला है यह

चुन-चुनकर तिनकें तोड़ें

चिन्ताओं के । समय फले ।


आधा आकाश सामने

क्षितिज से यहां तक आभा

नारंगी की । सभी बने ।


ऐसे ही दिन सहज ढले