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"एक लहर फैली अनन्त की / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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14:45, 21 मई 2007 का अवतरण

सीधी है भाषा बसन्त की


कभी आंख ने समझी

कभी कान ने पायी

कभी रोम-रोम से

प्राणों में भर आयी

और है कहानी दिगन्त की


नीले आकाश में

नयी ज्योति छा गयी

कब से प्रतीक्षा थी

वही बात आ गयी

एक लहर फैली अनन्त की ।


('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से )