भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हर सवाल ला जबाब / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: दैया रे दैया सुनो रे भैया कैसा कामाल हो गया लाजबाब हर सवाल हो गया…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:30, 27 अगस्त 2010 का अवतरण
दैया रे दैया सुनो रे भैया कैसा कामाल हो गया लाजबाब हर सवाल हो गया।।
देश के जो कर्णधार बन गये उसी को भार
नित नई परियोजना बनाते है स्वयं करें साफ हाथ चाटुकार लेके साथ नित नये अभियान ये चलाते है लेकर विदेशी ॠण ऐसे उड़ायें जैसे बाप का ही माल हो गया।। लाजबाब हर सवाल हो गया।।
जो पैदल न जाये बिना मेहनत की खाये मातृभाषा न आये वो शिक्षित कहलाये जो धर्म को न जाने पूर्वजों को न माने न संस्कृति पहचाने सुसंस्कृत कहलाये अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी पढ़ाये मानो अक्ल का अकाल हो गया।। लाजबाब हर सवाल हो गया।।
सरकारी तन्त्र जैसे बिगड़ा सा यन्त्र चाटुकारिता सफलता का बना महामन्त्र सेवक स्वतन्त्र सभी मालिक परतन्त्र सारी प्रजा दीनहीन ऐसा कैसा प्रजातन्त्र कार्यालय बने सभी लेन देन केन्द्र बड़ा साहब दलाल हो गया।। लाजबाब हर सवाल हो गया।।