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04:57, 29 अगस्त 2010 का अवतरण

उठौ उठौ हो भारत सोइए ना, सोइए ना मुख जोइए ना।
बीति गई जो ताहि बिसारौ, व्यर्थ समय निज खोइए ना।
देखहु उठि परदेशनि-उन्नति, आलस बीजनि बोइए ना।
कटि कसि करहु देश-उद्धारहि, भौज मनोजन भोइए ना।
पश्चिमीय विधा जुगुनू की, देखि प्रभा प्रिय मोहिए ना।
लखि निज ओर चेत करि चित में, साहसहीन जु होइए ना।
नैन खोलि प्राण पियारै, बाट रसातल टोहिए ना।
घाती घात लगैं चहु ओरन, झूठ और साँच समोइए ना।
सत्यनारायण बोझिल कामरि, जाकों और भिजोइए ना।

रचनाकाल : 1905