भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मातॄवंदना-2 / सत्यनारायण ‘कविरत्न’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("मातॄवंदना-2 / सत्यनारायण ’कविरत्न’" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
छो (मातॄवंदना-2 / सत्यनारायण ’कविरत्न’ का नाम बदलकर मातॄवंदना-2 / सत्यनारायण ‘कविरत्न’ कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:59, 29 अगस्त 2010 का अवतरण
जय जय भारतमातु मही।
द्रोण, भीम, भीषम की जननी, जग मधि पूज्य रही।।
जाकें भव्य विशाल भाल पै, हिम मय मुकुट विराजै।
सुवरण ज्योति जाल निज कर सों, तिहँ शोभा रवि साजै।।
श्रवत जासु प्रेमाश्रु पुंज सों, गंग-जमुन कौ बारी।
पद-पंकज प्रक्षालत जलनिहि, नित निज भाग सँवारी।।
चारु चरण नख कान्ति जासु लहि यहि जग प्रतिभा भासै।
विविध कला कमनीय कुशलता अपनी मंजु प्रकासै।।
स्वर्गादपि गरीयसी अनुपम अम्ब विलम्ब न कीजे।
प्रिय स्वदेश-अभिमान, मात, सतज्ञान अभय जय दीजै।।
रचनाकाल : 1918