भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अमावस की काली रातों में / कुमार विश्वास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है)
छो
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKVID|v=5ChzrnWyLkI}}
 
{{KKVID|v=5ChzrnWyLkI}}
 
अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,<br>
 
अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,<br>
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसू के संग होते हैं,<br>
+
जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,<br>
 
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,<br>
 
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,<br>
 
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,<br>
 
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,<br>
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
  
  
जब पोथे खाली होते है, जब हर सवाली होते हैं,<br>
+
जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,<br>
 
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,<br>
 
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,<br>
 
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,<br>
 
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,<br>
जब सूरज का लश्कर चाहत से गलियों में देर से जाता है,<br>
+
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,<br>
 
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,<br>
 
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,<br>
 
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,<br>
 
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,<br>
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
 
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,<br>
 
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,<br>
 
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,<br>
 
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,<br>
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते हैं,घबराते हैं,<br>
+
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते में घबराते हैं,<br>
 
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,<br>
 
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,<br>
 
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,<br>
 
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,<br>
पंक्ति 45: पंक्ति 45:
 
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,<br>
 
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,<br>
 
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,<br>
 
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,<br>
जो पगली लडकी कहती है, हाँ प्यार तुझी से करती हूँ,<br>
+
जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,<br>
 
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,<br>
 
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,<br>
उस पगली लड़की पर अपना कुछ अधिकार नहीं बाबा,<br>
+
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,<br>
ये कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी सार नहीं बाबा,<br>
+
सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी सार नहीं बाबा,<br>
 
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,<br>
 
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,<br>
 
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है |||
 
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है |||

06:20, 29 अगस्त 2010 का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।


जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।


जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते में घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।


दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है |||