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"सीने में बसर करता है ख़ुशबू सा कोई शख़्स / संकल्प शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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करता है बसर सीने में जादू-सा कोई शख़्स, | करता है बसर सीने में जादू-सा कोई शख़्स, | ||
− | फूलों-सा कभी और कभी चाकू | + | फूलों-सा कभी और कभी चाकू सा कोई शख़्स। |
− | पहले तो सुलगता है वो लोबान | + | पहले तो सुलगता है वो लोबान के जैसे, |
− | फिर मुझमें बिखर जाता है ख़ुशब | + | फिर मुझमें बिखर जाता है ख़ुशब सा कोई शख़्स। |
− | मुद्दत से | + | मुद्दत से मिरी आँखें उसी को हैं संभाले, |
− | बहता नहीं अटका हुआ आँसू | + | बहता नहीं अटका हुआ आँसू सा कोई शख़्स। |
− | ख़्वाबों के दरीचों में माजी की हवा से, | + | ख़्वाबों के दरीचों में वो माजी की हवा से, |
− | लहराता है उलझे हुए गेसू | + | लहराता है उलझे हुए गेसू सा कोई शख़्स। |
शाख ऐ शजर को देख के वो याद बहुत आया, | शाख ऐ शजर को देख के वो याद बहुत आया, | ||
− | मुझसे | + | जब बि था मुझसे मिरे बाजू सा कोई शख़्स। |
− | ग़ज़लों की बदौलत | + | ग़ज़लों की बदौलत ही तो वो मुझमें बसा है |
− | सरमाया ऐ हस्ती है उर्दू | + | सरमाया ऐ हस्ती है वो उर्दू सा कोई शख़्स। |
− | + | नाकामी के घनघोर अंधेरों मे भी संकल्प | |
मिल जाता है उम्मीद के जुगनू सा कोई शख़्स। | मिल जाता है उम्मीद के जुगनू सा कोई शख़्स। | ||
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02:23, 30 अगस्त 2010 का अवतरण
करता है बसर सीने में जादू-सा कोई शख़्स,
फूलों-सा कभी और कभी चाकू सा कोई शख़्स।
पहले तो सुलगता है वो लोबान के जैसे,
फिर मुझमें बिखर जाता है ख़ुशब सा कोई शख़्स।
मुद्दत से मिरी आँखें उसी को हैं संभाले,
बहता नहीं अटका हुआ आँसू सा कोई शख़्स।
ख़्वाबों के दरीचों में वो माजी की हवा से,
लहराता है उलझे हुए गेसू सा कोई शख़्स।
शाख ऐ शजर को देख के वो याद बहुत आया,
जब बि था मुझसे मिरे बाजू सा कोई शख़्स।
ग़ज़लों की बदौलत ही तो वो मुझमें बसा है
सरमाया ऐ हस्ती है वो उर्दू सा कोई शख़्स।
नाकामी के घनघोर अंधेरों मे भी संकल्प
मिल जाता है उम्मीद के जुगनू सा कोई शख़्स।