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"आँसू-छन्द / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु" के अवतरणों में अंतर
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− | + | तुमने समझे पीड़ा के स्वर | |
− | + | तुम हो मन के मीत हमारे | |
− | + | रिश्तों के धागों से ऊपर | |
− | + | तुम हो गंगा -जैसी पावन । | |
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16:29, 30 अगस्त 2010 का अवतरण
कितना अच्छा होता !
कितना अच्छा होता !जो तुम
यूँ बरसों पहले मिल जाते
सच मानो इस मन के पतझर-
में फूल हज़ारों खिल जाते
खुशबू से भर जाता आँगन ।
कुछ अपना दुख हम कह लेते
कुछ ताप तुम्हारे सह लेते
कुछ तो आँसू पी लेते हम
कुछ में हम दो पल बह लेते
हल्का हो जाता अपना मन ।
तुमने चीन्हें मन के आखर
तुमने समझे पीड़ा के स्वर
तुम हो मन के मीत हमारे
रिश्तों के धागों से ऊपर
तुम हो गंगा -जैसी पावन ।