"इंकलाब / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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21:09, 30 अगस्त 2010 का अवतरण
कुछ लोगों ने
भीड़ से कहा
वो जो मोटे पेट वाले हैं
और
ऊंची अट्टालिकाओं में बैठे हैं
इन्होने ही
तुम्हारा शोषण किया है
तुम्हारे हिस्से को
अपनी तिजोरियों में भर लिया है,
यही कारण है
कि तुम दबे-कुचले और धनहीन हो।
उठो !
संघर्ष करो
इनके विरुद्ध
फोड़ डालो इनका पेट
बोटी बोटी नोच डालो
और
तिजोरियां लूट कर
अपने शोषण का
सदियों पुराना हिसाब
चुकता कर लो।
तुम्हें इंकलाब लाना है
मारो इन्हें
मारो ! मारो !!
भीड़ ने
ऎसा ही किया
सदियों के शोषक मारे गए
और
भीड़ को भीड़ में
शहीद होने का गौरव मिला।
वे लोग
उठ कर आए
जो भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे
मगर
भीड़ में सब से पीछे थे
ऊंची आवाज में चिल्लाए
कोई है।
शून्य में उनकी आवाज
लौट आई
उन्होने
अट्टहास किया
सारा माल
अपनी झोली में डाल
महल तक आये
राजसिंहासन पर बैठ
नारा बुलन्द किया
इन्कलाब!
जिन्दाबाद ! जिन्दाबाद !!
अनाम भीड़ !
जिन्दाबाद ! जिन्दाबाद !!