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"मकड़ी घर के कोनों में रहेगी / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

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12:17, 31 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

छत से सटी
दीवारों के कोनो में
बार-बार
लगातार
बुनती है जाला
वह तीव्र बुद्धि वाली
खुंखार मकड़ी।

मकड़ी जानती है
जब भी जाल पूरा होगा
अपनी आप चला आयेगा
अपनी आधी अधूरी
महत्तवकांक्षाओं को पूरने
गर्म खून वाला मकौड़ा
और फिर
लाख छटपटाने पर भी
अपना स्वरूप
हरगिज बचा नहीं पायेगा।

घर की मालकिन
इक्यांतरे झाड़ती रहेगी
कोनों की ऊंचाइयों मे लगे जाले
फ़र्श पर बिखरी
पतली-पतली
भुरभुरी हड्डियां।
उसको
कतई चिन्ता नहीं होगी
कि उसके घर के
ऊंचे कोनों में
किस कदर

लड़ा जाता है
जिजीवषा के लिए
भयानक जीवन संग्राम।

मालकिन को हर रोज
चिन्ता रहेगी
घर की सफाई की
और
मकड़ी को
जाल व शिकार की।

जब्व तक
घर की मालकिन
चौकन्नी होकर
मकड़ी उन्मूलन अभियान
नहीं चलायेगी
मकड़ी घर के कोनो में रहेगी
और बुनती रहेगी
हर तीसरे रोज
मृत्यु के लुभावने प्रवेश द्वार।