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"चाँदनी से नहाने लगी... / सुधा ओम ढींगरा" के अवतरणों में अंतर
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हीर स्लेटी,
झाड़ियों को हटाती
वृक्षों की ओट से
राँझे को निहारती
पाजेब की झंकार दबाती
सुनहरी सालू से बदन ढाँपती
हर बाधा पार करती
आँगन में खड़े राँझे की
ओर बढ़ रही थी ....
राँझे ने,
उसके एहसास से ही
बाँहें फैला दीं और
हीर उनमें सिमट गई....
पूनम का चाँद
उन्हें देख मुस्करा उठा
राँझा हीर में डूब गया..
सुनहरी सालू,
पूरी सृष्टि में फैल गया
अँधेरा चाँदनी में गुम गया
औ' प्रकृति चाँदनी से नहाने लगी...