भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अकथनीय / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक }} <poem> कब …)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:54, 1 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

कब किसी बाज ने
कबूतर को छोड़ा है
जिसके भी
हाथ लगी
सपनों की गर्दन को
उसी ने मरोड़ा है

किन्तु जो कुछ भी किया
ईश्वर, धर्म, देश
समाजवाद या
अंतरात्मा के नाम पर

और
जो किया
अपने नाम पर
उसे बताने में शर्म
आ......ती है