भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमारा मिस्री माखन खो गया है / रविकांत अनमोल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
<poem>
 
<poem>
कहां गाँओं का गोधन खो गया है
+
कहां गाँवों का गोधन खो गया है
 
हमारा मिस्री माखन खो गया है
 
हमारा मिस्री माखन खो गया है
  

00:24, 2 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

कहां गाँवों का गोधन खो गया है
हमारा मिस्री माखन खो गया है

दिए जो ख़ाब तुमने ऊँचे-ऊँचे
उन्हीं में नन्हा बचपन खो गया है

महब्बत में समझदारी मिला दी
हमारा बावरापन खो गया है

जहा की दौलतें तो मिल गई हैं
कहीं अख़लाक का धन खो गया है

सुरीली बांसुरी की धुन सुनाकर
कहां वो मदन-मोहन खो गया है