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"तेरे सांचे मे ढल नहीं सकता / आदिल रशीद" के अवतरणों में अंतर

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मुहावरा ग़ज़ल
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गिर के उठ कर जो चल नहीं सकता
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वो कभी भी संभल नहीं सकता
  
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तेरे सांचे में ढल नहीं सकता
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इसलिए साथ चल नहीं सकता
  
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आप रिश्ता रखें,  रखें  न रखें
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मैं तो रिश्ता बदल नहीं सकता
  
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वो भी भागेगा गन्दगी की तरफ
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मैं भी फितरत बदल नहीं सकता
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आप भावुक हैं आप पागल हैं
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वो है पत्थर पिघल नहीं सकता
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इस पे मंजिल मिले , मिले न मिले
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अब मैं रस्ता बदल नहीं सकता
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तुम ने चालाक कर दिया मुझको
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अब कोई वार चल नहीं सकता
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इस कहावत को अब बदल डालो
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खोटा सिक्का तो चल नहीं सकता
 
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00:01, 3 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

          
मुहावरा ग़ज़ल
गिर के उठ कर जो चल नहीं सकता
वो कभी भी संभल नहीं सकता

तेरे सांचे में ढल नहीं सकता
इसलिए साथ चल नहीं सकता

आप रिश्ता रखें, रखें न रखें
मैं तो रिश्ता बदल नहीं सकता

वो भी भागेगा गन्दगी की तरफ
मैं भी फितरत बदल नहीं सकता

आप भावुक हैं आप पागल हैं
वो है पत्थर पिघल नहीं सकता

इस पे मंजिल मिले , मिले न मिले
अब मैं रस्ता बदल नहीं सकता

तुम ने चालाक कर दिया मुझको
अब कोई वार चल नहीं सकता

इस कहावत को अब बदल डालो
खोटा सिक्का तो चल नहीं सकता

शब्दार्थ
<references/>