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"रोटी के लिए / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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17:27, 4 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
लोगों ने
हाथ फैलाए
रोटी के लिए
यह आश्वासन देता रहा
सेंकता रहा
अपनी जुबान पर
अथाह रोटियां
मगर
परोसे के वक्त
खाली पड़ी
थाली के पेट आया
वही ठनठन गोपाल।
लोगों ने कहा
रोटियां सेंकने के लिए
आग की जरूरत होता है
और
आग वे ही पैदा करते हैं
जो
आग में जलना जानते हैं
इसलिए
पहले जलना सीखो
और जानो
कि रोटी जुबान की नही।