भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मां की आंखों में / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |संग्रह=आदमी नहीं है / ओम पुरो…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:32, 4 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
मेरी मां की आंखों में
पहले
सपने थे
लेकिन अब
कैद है अनुभव।
मां
जब
अनुभव पाल रही थी
मै
उसके
सपनों में
पल रह था।
अब
मैं
सपनों से बहुत दूर हूं
और
अनुभव मांग रहा हूं
लेकिन
बंद हैं
मां की दोनों आखें
जैसे
रखना चाहती हो उन्हें
संजोकर।