भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कभी छिछली कभी चढ़ती नदी का क्या भरोसा है? / सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:06, 5 सितम्बर 2010 का अवतरण
रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal
कभी छिछली, कभी चढ़ती नदी का क्या भरोसा है।
शेयर बाज़ार जैसी जिंदगी का क्या भरोसा है
यहाँ पिछले बरस के बाद फिर दंगा नहीं भड़का
रिआया खौफ में है खामुशी का क्या भरोसा है।
तबाही पर मदद को चाँद भी नीचे उतर आया
मगर इस चार दिन की चांदनी का क्या भरोसा है
वफादारी, नमक क्या चीज़ है, इन्सान क्या जाने
ये कुत्ते जानते हैं, आदमी का क्या भरोसा है
मिनट, घंटे, सेकंड इनका कोई मतलब नहीं होता
समय को भांपना सीखो, घड़ी का क्या भरोसा है
महाभारत में अबके कौरवों ने शर्त यह रख दी