भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फिर दिन ढला कि रात बताओ तो कुछ कहूँ / सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:25, 5 सितम्बर 2010 का अवतरण
रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal
फिर दिन ढला कि रात, बताओ तो कुछ कहूं
तुम सारे वाक्यात बताओ तो कुछ कहूं
इस वास्ते हूँ चुप कि अधूरी है हर ख़बर
एक एक वारदात बताओ तो कुछ कहूं
दुखियों का इक हुजूम सड़क पर निकल पड़ा
इस भीड़ को बरात बताओ तो कुछ कहूं
आसान जिंदगी पे कहूं क्या, बताऊँ क्या
तुम अपनी मुश्किलात बताओ तो कुछ कहूं
सारी कहानियो में वही दुःख वही घुटन
कोई निराली बात बताओ तो कुछ कहूं
जीवन मरण को बोझ चलो मान भी लिया
किसको मिली निजात, बताओ तो कुछ कहूं
शहरों ने सर्वत अब तो बदल डाली अपनी शक्ल