भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुबह / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मान…)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:58, 7 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण



भूल जाओ बाहर का शोर
कहीं तुम्हारे मन के भीतर
देखो नाच रहा है मोर

महक रहे हैं सुंदर-सुंदर
रंग-बिरंगे फूल मनोहर
विस्तृत नभ के हर कोने से
उतर रही है सुबह की लाली
भर लो इसको आँचल में

स्वागत करो सुबह का
सुबह आई है द्वार तुम्हारे
2005