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"सफ़र / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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अगर देखोगे पीछे
 
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तो मुमकिन है
 
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कि गिर पड़ोगे कहीं
 
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पीछे छूट गये लोग
 
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पीछे छूट गया समय
 
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कभी लौटकर नहीं आते
 
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फिर उनके बारे में सोचना क्या
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और जो लौटकर नहीं आते
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अगम्य पर्वत श्रेणियाँ
 
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एक तपता रेगिस्तान
 
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शायद कोई गाता हुआ झरना
 
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या बहती हुई कोई मस्त नदी
 
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जो पीछे छूट गया  
 
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वो लौट कर नहीं आयेगा
 
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धरती जितनी छूटती है पीछे
 
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हम कहीं छूटते  जाते हैं पीछे
समय कभी छूटता नहीं
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17:47, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण


आगे बढ़ते हुए
अगर देखोगे पीछे
तो मुमकिन है
कि गिर पड़ोगे कहीं

पीछे छूट गये लोग
पीछे देखे हुए दृश्य
पीछे छूट गया समय
कभी लौटकर नहीं आते

और जो लौटकर नहीं आते
उनके बारे में फिर सोचना क्या?

अगले पड़ावों पर जाने क्या है?

अगम्य पर्वत श्रेणियाँ
एक तपता रेगिस्तान
एक दुर्गम जंगल
या कोई शहर कंक्रीट का
या शायद कुछ खिलते हुए फूल
शायद कोई गाता हुआ झरना
या बहती हुई कोई मस्त नदी
जो पीछे छूट गया
वो लौट कर नहीं आयेगा
उसके लिये अफ़सोस मत करो
धरती जितनी छूटती है पीछे
उतनी ही होती है
           आगे भी

जितना रह जाता है पीछे
समय होता है उतना ही आगे भी
हम कहीं छूटते जाते हैं पीछे
समय कहीं नहीं छूटता

समय हमेशा साथ होता है
2006