भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गीत-3 / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> जितनी बार लड़ेंग…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
जितनी बार लड़ेंगे दुख से | जितनी बार लड़ेंगे दुख से | ||
हम उतने ही वीर बनेंगे | हम उतने ही वीर बनेंगे | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 11: | ||
राहों में चाहे शूल मिलें | राहों में चाहे शूल मिलें | ||
मन के कोमल फूल जलें | मन के कोमल फूल जलें | ||
− | जितनी | + | जितनी बाधाएँ होंगी पथ में |
− | हम उतने ही धीर बनेंगे, जितनी | + | हम उतने ही धीर बनेंगे, जितनी बार... |
− | दुख के बादल तो | + | दुख के बादल तो छाएँगे |
− | जल विपदा का | + | जल विपदा का बरसाएँगे |
एक दिन दुख ओ` पीड़ा | एक दिन दुख ओ` पीड़ा | ||
− | अपनी ही तकदीर बनेंगे, जितनी बार | + | अपनी ही तकदीर बनेंगे, जितनी बार... |
1987 | 1987 | ||
− | |||
<poem> | <poem> |
19:14, 7 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
जितनी बार लड़ेंगे दुख से
हम उतने ही वीर बनेंगे
राहों में चाहे शूल मिलें
मन के कोमल फूल जलें
जितनी बाधाएँ होंगी पथ में
हम उतने ही धीर बनेंगे, जितनी बार...
दुख के बादल तो छाएँगे
जल विपदा का बरसाएँगे
एक दिन दुख ओ` पीड़ा
अपनी ही तकदीर बनेंगे, जितनी बार...
1987