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"शब्दों का गुलमोहर / गोबिन्द प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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काल ने
लिख दिया मुझे
शब्दों के मानिन्द
मेरे युग के चेहरे पर
चाहता हूँ फ़क़त :
शब्दों का सुलगता गुलमोहर
बतौर वसीयत
अगले युग को सौंपा जाए