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"पलक झपकने में / गोबिन्द प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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17:10, 8 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण


देखो
पत्ता... वह टूटा
टूट कर अब गिरा
....अब गिरा
फिर देर तक
हवा में तिरता चला जाएगा
सिहरते किसी आशय की ओर

पलक झपकेगी
और कोई
बुढ़ापे की दहलीज प’
क़दम रख कर लौट रहा होगा
झर रही दुनिया में,गिरने के लिए
ठीक पत्ते की तरह;हवा की लहरों पर