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13:14, 9 सितम्बर 2010 का अवतरण
इशिदेरो दे ब्लास के लिए
कितनी शिद्दत से?
कितनी शिद्दत से चाहता है घोड़ा
कि वह कुत्ता बन जाए !
कितनी शिद्दत से चाहता है कुत्ता
कि वह बुलबुल हो जाए !
कितनी शिद्दत से चाहती है बुलबुल
कि वह बन जाए भौंरा !
कितनी शिद्दत से चाहता है भौंरा
कि वह घोड़े में तब्दील हो जाए !
और घोड़ा ?
कितनी तेज़ी से झटक लेता है गुलाब से पराग के तीर !
और कैसे तो जाग उठता है
उसके मोटे होंठ के अंतरे से
गुलाब का भूरा रंग !
और गुलाब ?
कैसा तो एक झुंड, रौशनियों और किलकारियों का
जुड़ा हुआ, अपने धड़ में जमी मिश्री से !
और मिश्री ?
कैसे तो खंजर, जो दिखते रहते हैं हर वक़्त
खुली आँखों के सपने में !
और खंजर?
कैसे तो फिरते हैं, नग्न,
अस्तबलों के बाहर की चाँदनी में
लगातार, नाज़ुक लाल गोश्त खोजते!
और मैं,
छज्जों के किनारों पर ढूँढता हुआ
कैसे तो आग के फरिश्ते!
ख़ुद होते हुए भी वही!
पर इन मेहराबों के पलस्तर
कितने भव्य,
कितने अनदेखे,
कितने महीन
बिना शिद्दत के भी!
अंग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीकान्त'