"प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये / कुमार विश्वास" के अवतरणों में अंतर
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अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे... | अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे... | ||
− | लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही | + | लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं , |
कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं , | कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं , | ||
− | वो लडाई को भले आर पार ले | + | वो लडाई को भले आर पार ले जाएँ , |
− | लोहा ले | + | लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ , |
जिसकी चोखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी | जिसकी चोखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी | ||
− | उस अदालत में हमें बार बार ले | + | उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ |
हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब | हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब |
06:04, 10 सितम्बर 2010 का अवतरण
प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये ,
ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाये ,
घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले ,
अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले ,
लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाये ,
भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाये ,
सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में ,
नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे ,
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...
लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं ,
कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं ,
वो लडाई को भले आर पार ले जाएँ ,
लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ ,
जिसकी चोखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी
उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ
हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब
हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...