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"आत्मराग-दो / गोबिन्द प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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सब का अपना आकाश अलग
है धरती सब की अलग अलग

अलग अलग सब का स्वर-तार
तिर रहे लेकर सब अपना सार