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"प्रयाण-गीत / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
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न हाथ एक शस्त्र हो न साथ एक अस्त्र हो
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न अन्न नीर वस्त्र हो,
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हटो नहीं, डटो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।
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रहे समक्ष हिम शिखर, तुम्हारा पर्ण उठे निखर
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भले ही जाय तन बिखर,
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रुको नहीं, झुको नहीं, बढे चलो बढे चलो ।
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घटा घिरी अटूट हो अधर में कालकुट हो
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वही अमृत का घूंट हो
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जिये चलो मरे चलो, बढे चलो बढे चलो ।
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गगन उगलता आग हो, छिड़ा मरण का राग हो,
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लहू का अपने फ़ाग हो
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अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।
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चलो नई मिसाल हो, जलो नई मशाल हो,
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पढो नया कमाल हो
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रुको नहीं, झुको नहीं, बढे चलो बढे चलो  ।
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अशेष रक्त तोल दो, स्वतंत्रता का मोल दो,
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कडी युगों की खोल दो,
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डरो नहीं, मरो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।।
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11:50, 14 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण