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"वह आया / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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व्यथित राष्ट्र पर आँचल करता
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जीवन के नव-रस-कन ढरता,
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वंदनीय बापू वह आया
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कोटि कोटि चरणों को धरता!
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::यह किसका उज्ज्वल प्रकाश है
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::नवजीवन जन जन में छाया,
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::सत्य जगा, करुणा उठ बैठी
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::सिमटी मायावी की माया,
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‘वैभव’ से ‘विराग’ उठ बोला--
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‘चलो बढ़ो पावन चरणों में,
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मानव-जीवन सफल बना लो
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चढ़ पूजा के उपकरणों में।’
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::जननी की कड़ियाँ तड़काता
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::स्वतंत्रता के नव स्वर भरता,
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::वंदनीय बापू वह आया
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::कोटि कोटि चरणों को धरता!
 
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20:50, 14 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

मन में नूतन बल सँवारता
जीवन के संशय भय हरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता;
धरणी मग होता है डगमग
जब चलता यह धीर तपस्वी,
गगन मगन होकर गाता है
गाता जो भी राग मनस्वी;
पग पर पग धर-धर चलते हैं
कोटि कोटि योधा सेनानी,
विनत माथ, उन्नत मस्तक ले,
कर निःशस्त्र आत्म-अभिमानी!
युग-युग का घनतम फटता है
नव प्रकाश प्राणों में भरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता;
निद्रित भारत, जगा आज है
यह किसका पावन प्रभाव है?
किसके करुणांचल के नीचे
निर्भयता का बढ़ा भाव है?
नवचेतन की श्वास ले रहे
हम भी आज जी उठे जग में,
उठा लगाया हृदय-कंठ से
किसने पददलितों को मग में?
व्यथित राष्ट्र पर आँचल करता
जीवन के नव-रस-कन ढरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता!
यह किसका उज्ज्वल प्रकाश है
नवजीवन जन जन में छाया,
सत्य जगा, करुणा उठ बैठी
सिमटी मायावी की माया,
‘वैभव’ से ‘विराग’ उठ बोला--
‘चलो बढ़ो पावन चरणों में,
मानव-जीवन सफल बना लो
चढ़ पूजा के उपकरणों में।’
जननी की कड़ियाँ तड़काता
स्वतंत्रता के नव स्वर भरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता!