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"तिरे इश्क की इंतहा चाहता हूँ / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर

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तिरे इश्क़ की इंतहा चाहता हूँ
 
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मिरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ
 
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वादा-ए-बेहिजाबी=पर्दादारी हटाने का वादा; सब्र-आज़मा=धैर्य की परीक्षा लेने वाली; ज़ाहिदों=संयम से रहने वालों को
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15:03, 16 सितम्बर 2010 का अवतरण

तिरे इश्क़ की इंतहा चाहता हूँ मिरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी <ref>पर्दादारी हटाने का वादा</ref> कोई बात सब्र-आज़मा <ref>धैर्य की परीक्षा लेने वाली</ref> चाहता हूँ

वो

जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों<ref>धैर्य की परीक्षा लेने वाली</ref> को

कि मैं आपका सामना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऎ अहले-महफ़िल चिराग़े-सहर<ref>भोर का दीया </ref> हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बे-अदब<ref>असभ्य </ref> हूँ सज़ा चाहता हूँ


</poem>

शब्दार्थ
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