भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तिरे इश्क की इंतहा चाहता हूँ / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
कोई बात सब्र-आज़मा <ref>धैर्य की परीक्षा लेने वाली</ref> चाहता हूँ
 
कोई बात सब्र-आज़मा <ref>धैर्य की परीक्षा लेने वाली</ref> चाहता हूँ
  
वो जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
+
वो जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों<ref>संयम से रहने वालों</ref> को
 
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ
 
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ
  

15:30, 16 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

तिरे इश्क़ की इंतहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी <ref>पर्दादारी हटाने का वादा</ref>
कोई बात सब्र-आज़मा <ref>धैर्य की परीक्षा लेने वाली</ref> चाहता हूँ

वो जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों<ref>संयम से रहने वालों</ref> को
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऎ अहले-महफ़िल
चिराग़े-सहर<ref>भोर का दीया</ref> हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब<ref>असभ्य</ref> हूँ सज़ा चाहता हूँ

शब्दार्थ
<references/>