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"अक्षम हूं मैं / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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रहने दो बंधु ! | रहने दो बंधु ! | ||
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जीने दो जीवन को तापित औ' परितापित, | जीने दो जीवन को तापित औ' परितापित, | ||
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निष्कलंक रह लूंगा | निष्कलंक रह लूंगा | ||
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11:02, 23 मई 2007 का अवतरण
रचनाकार: केदारनाथ अग्रवाल
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आतंकित करता है मुझे मेरा सम्मान ।
इसी वक्त तो परास्त करती हैं मुझे
मेरी कमजोरियां ।
कांपता हूं मैं, यश की विभूति से विभूषित,
रक्त-चंदन का टीका भाल पर लगाए,
पुष्पमाल के रूप में
सर्पमाल को लटकाए ।
अक्षम हूं मैं असमर्थताओं का पुतला,
गौरव-गुन-हीन, अबलीन, धुंधला,
काल-पीड़ित कविता में
बहुत-बहुत दुबला ।
रहने दो बंधु !
मुझे रहने दो अवहेलित,
जीने दो जीवन को तापित औ' परितापित,
निष्कलंक रह लूंगा
चाहे रहूं अवमानित ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से )