भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरा वेतन / ताराप्रकाश जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem> मेरा वेतन मेरा वेतन ऐसे रानी जैसे गरम तवे पे पानी एक कसैली …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
मेरा वेतन ऐसे रानी | मेरा वेतन ऐसे रानी | ||
जैसे गरम तवे पे पानी | जैसे गरम तवे पे पानी |
21:32, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण
मेरा वेतन ऐसे रानी
जैसे गरम तवे पे पानी
एक कसैली कैंटीन से
थकन उदासी का नाता है
वेतन के दिन सा ही निश्चित
पहला बिल उसका आता है
हर उधार की रीत उम्र सी
जो पाई है सो लौटानी
दफ्तर से घर तक है फैले
कर्जदाताओं के गर्म तकाजे
ओछी फटी हुई चादर में
एक ढकु तो दूजी लाजे
कर्जा लेकर क़र्ज़ चुकाना
अंगारों से आग भुजानी
फीस,ड्रेस,कॉपिया,किताबें
आंगन में आवाजें अनगिन
जरूरतों से बोझिल उगता
जरूरतों में ढल जाता दिन
अस्पताल के किसी वार्ड सी
घर में सारी उम्र बितानी
अभी यह कविता अधूरी है