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|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}गम <poem>ग़म रहा जब तक कि दम में दम रहादिल के जाने का निहायत ग़म रहा
दिल के जाने का निहायत गम न पहुँचा गोशा-ए-दामन तलकक़तरा-ए-ख़ूँ था मिज़्हा<ref>भवें</ref> पे जम रहा
जामा-ए-अहराम-ए-जाहिद<ref>पवित्र चोले</ref> पर न जा
था हरम<ref>मस्जिद</ref> में लेक ना-महरम<ref>अपरिचित / अँधेरे में</ref> रहा
 
ज़ुल्फ़ खोले तू जो टुक<ref>क्षण भर के लिए</ref> आया नज़र
उम्र भर याँ काम-ए-दिल बरहम<ref>दिल परेशान रहा</ref> रहा
 
उसके लब से तल्ख़<ref>चुभने वाली बातें</ref> हम सुनते रहे
अपने हक़ में<ref>हमारे लिए</ref> आब-ए-हैवाँ<ref>अमृत-कुण्ड</ref> सम<ref>विष</ref> रहा
हुस्न था तेरा बहुत आलम फरेब
 
खत के आने पर भी इक आलम रहा
 
मेरे रोने की हकीकत जिस में थी
एक मुद्दत तक वो क़ाग़ज़ नम रहा
एक मुद्दत तक वो कागज नम रहा सुबह पीरी शाम होने आई<ref>जीवन-संध्या की रात होने को है</ref> `मीर'  जामा-ऐ-एहराम-ऐ-ज़ाहिद पर तू जाजीता, याँ बहुत दिन कम रहा</poem>था हरम में लेकिन ना-महरम रहा{{KKMeaning}}