भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आंख हैरान ज़हन खाली है/ सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {KKGlobal}}{ {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …)
(कोई अंतर नहीं)

20:42, 22 सितम्बर 2010 का अवतरण

{KKGlobal}}{

                  रचनाकार=सर्वत एम जमाल  
                  संग्रह=
                  }}
                  साँचा:KKCatGazal

आँख हैरान ज़हन खाली है
रात ने क्या सहर निकली है

आज जब अपना हाथ खाली है
हर किसी ने नजर चुरा ली है

जिसकी गर्मी नफस नफस है आज
हमने वो आग खुद ही पाली है

इन थपेड़ों से खौफ क्या खाना
ये हवा अपनी देखी-भाली है

अब चिरागों को रौशनी दे दो
तीरगी ने कमां उठा ली है

सब बराबर हों कोई गम न रहे
फिक्र ये कितनी भोली-भाली है

दिन बुरे भी हों तो ये हैं दिन ही
रात रोशन भी हो तो काली है

अब कनाअत की फिक्र कर सर्वत
तूने शोहरत बहुत कमा ली है