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सब पे आती है सब की बारीसे | सब पे आती है सब की बारीसे | ||
मौत मुंसिफ़ है कम-ओं-बेश नहीं | मौत मुंसिफ़ है कम-ओं-बेश नहीं | ||
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'पांच सौ गाँव बह बह गए इस साल' | 'पांच सौ गाँव बह बह गए इस साल' | ||
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15:23, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण
सब पे आती है सब की बारीसे
मौत मुंसिफ़ है कम-ओं-बेश नहीं
ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती
कौन खायेगा किसका हिस्सा है
दाने-दाने पे नाम लिखा है
'सेठ सूद्चंद मूलचंद आक़ा
उफ़! ये भीगा हुआ अख़बार
पेपर वाले को कल से चेंग करो
'पांच सौ गाँव बह बह गए इस साल'