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"त्रिवेणी 2 / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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सब पे आती है सब की बारीसे
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मौत मुंसिफ़ है कम-ओं-बेश नहीं
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दाने-दाने पे नाम लिखा है  
 
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'सेठ सूद्चंद मूलचंद आक़ा
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उफ़! ये भीगा हुआ अख़बार  
 
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पेपर वाले को कल से चेंग करो  
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'पांच सौ गाँव बह बह गए इस साल'
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'पांच सौ गाँव बह गए इस साल'
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19:20, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

सब पे आती है सब की बारी से
मौत मुंसिफ़ है कम-ओ-बेश नहीं

ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती


कौन खायेगा किसका हिस्सा है
दाने-दाने पे नाम लिखा है

'सेठ सूदचंद मूलचंद आक़ा'


उफ़! ये भीगा हुआ अख़बार
पेपर वाले को कल से चेंज करो

'पांच सौ गाँव बह गए इस साल'