भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कांच के ख्वाब / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह = पुखराज / गुलज़ार }} <poem> देखो आहिस्ता च…) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
|रचनाकार=गुलज़ार | |रचनाकार=गुलज़ार | ||
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार | |संग्रह = पुखराज / गुलज़ार | ||
− | }} | + | }} |
+ | {{KKCatNazm}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | देखो आहिस्ता चलो,और भी | + | देखो आहिस्ता चलो,और भी आहिस्ता ज़रा |
− | देखना,सोच-समझकर ज़रा | + | देखना,सोच-समझकर ज़रा पाँव रखना |
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं | जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं | ||
− | कांच के | + | कांच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में |
− | + | ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जायें देखो | |
− | जाग जायेगा कोई | + | जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जायेगा |
</poem> | </poem> |
19:21, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
देखो आहिस्ता चलो,और भी आहिस्ता ज़रा
देखना,सोच-समझकर ज़रा पाँव रखना
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जायें देखो
जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जायेगा