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"क़ब्रें / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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कैसे चुपचाप मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ | कैसे चुपचाप मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ | ||
जिस्म की ठंडी सी | जिस्म की ठंडी सी | ||
तारीक सियाह कब्र के अंदर! | तारीक सियाह कब्र के अंदर! | ||
− | + | न किसी सांस की आवाज़ | |
− | + | न सिसकी कोई | |
− | + | न कोई आह, न जुम्बिश | |
− | + | न ही आहट कोई | |
ऐसे चुपचाप ही मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ | ऐसे चुपचाप ही मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ |
19:36, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
कैसे चुपचाप मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ
जिस्म की ठंडी सी
तारीक सियाह कब्र के अंदर!
न किसी सांस की आवाज़
न सिसकी कोई
न कोई आह, न जुम्बिश
न ही आहट कोई
ऐसे चुपचाप ही मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ
उनको दफ़नाने की ज़हमत भी उठानी नहीं पड़ती !