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कैसे चुपचाप मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ  
 
कैसे चुपचाप मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ  
 
जिस्म की ठंडी सी
 
जिस्म की ठंडी सी
 
तारीक सियाह कब्र के अंदर!
 
तारीक सियाह कब्र के अंदर!
ना किसी सांस की आवाज़  
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किसी सांस की आवाज़  
ना सिसकी कोई  
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सिसकी कोई  
ना कोई आह, ना जुम्बिश  
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कोई आह, जुम्बिश  
ना ही आहट कोई
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ही आहट कोई
  
 
ऐसे चुपचाप ही मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ
 
ऐसे चुपचाप ही मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ

19:36, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

कैसे चुपचाप मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ
जिस्म की ठंडी सी
तारीक सियाह कब्र के अंदर!
न किसी सांस की आवाज़
न सिसकी कोई
न कोई आह, न जुम्बिश
न ही आहट कोई

ऐसे चुपचाप ही मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ
उनको दफ़नाने की ज़हमत भी उठानी नहीं पड़ती !